गुरू पूर्णिमा के अवसर पर
युगों-युगों से
राह दिखाते
उर-अंतर का तमस
मिटाते,
ज्योति शिखा सम
सदा प्रज्ज्वलित
सीमाओं में नहीं
समाते !
प्रेम, ज्ञान, सुख पुंज शांति के
सुमन खिलाते परा
भक्ति के
बिना भेद दिल से
अपनाया
बंधन तोड़कर
आसक्ति के !
विश्व बना परिवार
तुम्हारा
सदा साथ रह बने
सहारा
हो अनंत अनंत से
मिलकर
सागर भी तुम
तुम्हीं किनारा !
अपना जान तुम्हें
जो भजता
शांति, ज्ञान से दामन भरता,
बाहर जो सुख ढूँढ़
रहा था
खुद के भीतर ही
पा जाता !
जीवन मर्म,
भेद समझाया
तुमने अपना आप
दिखाया,
दुःख, पीड़ा आते-जाते हैं
सत्य शाश्वत
ज्ञान बरसाया !
तुम क्या हो बस तुम्हीं जानते
निरख अदा हम वारी जाते,
जो आत्म निर्दोष है भीतर
उसकी आहट पा खिल जाते !
निरख अदा हम वारी जाते,
जो आत्म निर्दोष है भीतर
उसकी आहट पा खिल जाते !
गुरू पूर्णिमा
साँझ दिव्य है
महिमा गुरू की
नित भव्य है,
नतमस्तक हो नमन
करें हम
चरण धूलि गुरू की
सेव्य है !
गुरु की महिमा अपरम्पार है ... गुरु बिन ज्ञान नहीं जीवन में ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है गुरु वंदन में ...
सत्य कहा है आपने..स्वागत व आभार !
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