सुख-दुःख
सुख की तृष्णा एक भ्रम ही तो है
दुःख की पकड़ ही असली चीज
दुःख अपने होने का सबूत देता है
सुख है खुद को मिटाने की तरकीब
सुख बंट रहा है बेमोल पर नहीं कोई उसका खरीदार
दुःख की भारी कीमत चुकानी पड़ती है, पर
अमीर कहलाने की जैसे सबको है दरकार
सुख मुक्त करता है दुनिया के जंजाल से
कुछ ‘होने’ का भरोसा दिलाता दुःख व्यस्त रखता है
हर हाल में
दुःख से छूटना है तो सुख को देनी होगी राह
मित्र उसको बनाने की भरनी होगी भीतर चाह
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 12-10-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2755 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंबहुत सुंदर। waah
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमित जी !
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