कल जो चाहा आज मिला है
भय खोने का, पाने का सुख
मन को डाँवाडोल करेगा,
अभय हृदय का, वैरागीपन
पंछियों में उड़ान भरेगा !
मंजिल की है चाह जिन्हें भी
कदमों को किसने रोका है,
बाधाएँ भी रची स्वयं ने
सिवा उसी के सब धोखा है !
कल जो चाहा आज मिला है
कौन शिकायत करता खुद की,
निज हाथों से पुल तोड़े हैं
नौका डूब रही अब मन की !
जीवन एक विमल दर्पण सा
जस का तस झलकाता जाता,
नयन मूंद ले कोई कितने
अंतर राग बरस ही जाता !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन खुशवंत सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत बहुत आभार ध्रुव जी !
हटाएंI like very much this. Thanks for this. daily news पढ़ने के लिए इस वेबसाइट को देखें। Latest News by Yuva Press India
जवाब देंहटाएंok
हटाएंस्वागत व आभार लोकेश जी !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
सादर
स्वागत व आभार ज्योति जी !
हटाएंHave you complete script Looking publisher to publish your book
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आभार !
हटाएंसुंदर भावपूर्ण ... आशा भाव लिए
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