शुक्रवार, अगस्त 31

उन सभी युवाओं को समर्पित जो विवाह बंधन में बंधने वाले हैं




 यह बंधन तो प्रेम का बंधन है 

बचपन से किशोर फिर युवा होते तन
फिर भी रहे वही बच्चों वाले प्यारे से मन
उन्हीं मासूम मनों के बंधन में बंधे हो तुम दोनों
एक-दूसरे का सम्बल बनकर
देखभाल और परख कर
खूबियाँ और कमियां
सहकर छोटी-बड़ी कमजोरियां
संग-संग चलने का निर्णय है तुम्हारा
बनना चाहते हो हर सुख-दुःख में
इकदूजे का सहारा
निष्ठा और समर्पण
 इन दो स्तम्भों पर टिका है यह बंधन
कुछ अधिकारों और कुछ कर्त्तव्यों का करना है निर्वाह
मैत्री और साझेदारी का नाम है विवाह
सुनहरे भविष्य की नींव है यह प्रथा
मिटाती है दिलों से अधूरेपन की व्यथा
दो नहीं अबसे एक हो तुम
दो ‘मैं’ से मिलकर बना है एक समर्थ ‘हम’
विवाह की पावनता को बरकरार रखना
सदा दूजे को दिया करार रखना
थोड़े में कहें तो अधरों पर मुस्कान
और दिल में ढेर सारा प्यार रखना !


शनिवार, अगस्त 25

सपनीला मन


सपनीला मन


शब्दों का एक जखीरा
बहा चला आता है
जाने कहाँ से...
शब्द जो ठोस नहीं हैं
कितने वायवीय पर कितने शक्तिशाली
देह दिखती है
मन नहीं दिखता
विचार जो नहीं दिखता आज
कल देह धरेगा
सूक्ष्म से स्थूल की यात्रा चलती रहेगी...
देह के बिना भी हम हैं
शब्द क्या ये नहीं बताते
शब्द.. जो एक ऊर्जा हैं
जिन्हें आकार हम देते हैं...
अव्यक्त को व्यक्त करते आये हैं हम युगों से
अब वापस लौटना है
स्थूल से सूक्ष्म की ओर....
हम देह की तरह रहते हैं
और मन..
 अनजाना ही बना रहता है जीवन भर
खुद की पहचान किये बिना
गुजर जाती है उमर
देह से जुड़ी है हर बात
सुबह से शाम तक
मन नींद में मुखर हो जाता है
सपनों में घटता है आधा जीवन
जिसे सपना ही तो है.. कहकर
भुला देते हैं हम !


गुरुवार, अगस्त 23

पाया परस जब नेह का



पाया परस जब नेह का


तेरे बिना कुछ भी नहीं
तेरे सिवा कुछ भी नहीं,
तू ही खिला तू ही झरा
तू बन बहा नदिया कहीं !

तू लहर तू ही समुन्दर
हर बूंद में समाया भी,
सुर नाद बनकर गूँजता
गान तू अक्षर अजर भी !

है प्रीत करुणा भावना
सपना बना तू भोर में,
छू पलक तू ही जगाता
सुख सम भरा हर पोर में !

तुझसे हृदय की धड़कनें
मृत्यु है तेरी गोद में,
श्रद्धा, सबूरी, अर्चना,
नव चेतना हर शब्द में !

भीतर मिला हर स्वर्ग बन
जीवन का सहज मर्म तू,
खोयी कहीं दुःख की अगन
हर नीति औ’ हर धर्म तू !

कतरा-कतरा विदेह बन
डूबा सरल उर भाव में,
पाया परस जब नेह का
मन खो गया इस चाव में !

कण-कण पगा रस माधुरी
भीगा सा मन वसन हिले,
तेरी झलक जब थिर हुई
उर में हजार कमल खिले !

मद मस्त हो उर गा उठा
जीवन बिखरता हर घड़ी,
तू ही निखरता भोर में
तू ही सजा तारक लड़ी !

तू ही गगन में चन्द्रमा
तू ही धरा पर मन हुआ,
रविकर हुआ छू ले जहाँ
तू ही खिला बन कर ऋचा !


सोमवार, अगस्त 20

पुनः पुनः मिलन घटता है




पुनः पुनः मिलन घटता है



निकट आ सके कोई प्रियतम
तभी दूर जाकर बसता है !

श्वास दूर जा नासापुट से
अगले पल आकर मिलती है,
आज झरी मृत हो जो कलिका
पुनः रूप नया धर खिलती है !

बार–बार घट व्याकुल होकर
पाहुन का रस्ता तकता है,
उस प्रियजन का निशिवासर जो
नयनों में छुपकर हँसता है !

घर से दूर हुए राही को
स्वप्नों में आंगन दिसता है,
मेघ चले जाते बिन बरसे
मरुथल में सावन झरता है !

शुक्रवार, अगस्त 17

भारत रत्न अटल जी



 भारत रत्न अटल जी

बड़े दिवस पर जन्म लिया था
अति विशाल कवि मानस पाया, 
अंतर समर्पित राष्ट्र हित हो
जूझ आंधियों में मुस्काया !

तेरह मास, पांच वर्षों  का
सफर बड़ा ही कठिन गुजारा,
किन्तु नहीं आया फिर से वह
गौरवशाली समय दुबारा !

जनसंघ के संस्थापक बने
बीजेपी को भी जन्म दिया,
स्वयं सेवक बनकर संघ के
पांचजन्य का नाद भी किया !

चौबीस दलों को साथ मिला
एक नई सरकार बनाई,
इक्यासी मंत्री थे जिसमें
भारत को नई कीर्ति दिलाई !

भारत परमाणु सम्पन्न हो
पड़ोसी से संबंध सुधाार,
समर कारगिल का भी जीता
कवि हृदय भरी करुणा अपार !

भारत के चारों कोने जुड़ 
अटल मार्ग से आज मिले हैं,
पटु वक्ता ओजस्वी नेता
पाकर भारत भाग्य खिले हैं !

मंगलवार, अगस्त 14

तिरंगा


तिरंगा

नीलगगन में लहराते तिरंगे को देख
याद आते हैं वे अनाम चेहरे
इतिहास में जिनका कोई वर्णन नहीं
इस अमर स्वतन्त्रता के वाहक जो बने !

आज आजाद हैं हम
खुली हवा में श्वास लेने,
 दिल का हाल कहने सुनने को !

चैन की नींद सो सकते हैं
उगा सकते हैं धरा में अपनी पसंद की फसलें
भारत माँ को आराधना करते हुए
उगते सूरज को अर्घ्य चढ़ा सकते हैं !

लहरा जब जब तिरंगा शान से
हर भारतीय का हृदय भरा है आनबान से !

होश रखते हुए दिल में जोश जगाना है
इस तरह कुछ तिरंगा लहराना है
राम और कृष्ण की पावन भूमि का
महान गौरव सारे विश्व में बढ़ाना है !

शनिवार, अगस्त 11

अभी समर्थ हैं हाथ



अभी समर्थ हैं हाथ



अभी देख सकती हैं आँखें
चलो झाँके किन्हीं नयनों में
उड़ेल दें भीतर की शीतलता
और नेह पगी नरमाई
सहला दें कोई चुभता जख्म
कर दें आश्वस्त कुछ पलों के लिए ही सही
बहने दें किसी अदृश्य चाहत को
वरदान बनकर !

अभी सुन सकते हैं कान
चलो सुनें बारिश की धुन
और पूर दें
किसी झोंपड़ी का टूटा छप्पर
अनसुना न रह जाये रुदन
किसी बच्चे का
 न ही किसी पीड़ित की पुकार !

अभी समर्थ हैं हाथ
समेट लें सारे दुखों को झोली में
और बहा दें
तरोताजा होकर संवारें किसी के उलझे बाल
उदास मुखड़े और उड़े चेहरे से पूछें दिल का हाल !

अभी श्वासें बची हैं
जिसने दी हैं उसका कुछ कर्ज उतार दें
थोड़ा सा ही सही
उसकी दुनिया को प्यार दें !

बुधवार, अगस्त 8

खुले आकाश सा




खुले आकाश सा



सवाल बन के जगाये कई रातों को
 जवाब बनकर एक दिन वही सुलाता है
 ढूँढने में जिसे बरसों गुजारे
वही हर रोज तब आकर जगाता है
जिसकी चाहत में भुला दिया जग को
 जग की हर बात में नजर आता है
छुपा हुआ है जो हजार पर्दों में
खुले आकाश सा दिपदिपाता है
मांगते फिरते हैं जिससे सुखों की दौलत
बेहिसाब वह रहमतें बरसाता है !  



सोमवार, अगस्त 6

राखी के कोमल धागे





राखी के कोमल धागे




आया अगस्त
अब दूर नहीं श्रावणी पूनम
उत्सव एक अनोखा, जिस दिन
मधुर प्रीत की लहर बहेगी
हृदय जुड़ेंगे, बांध रेशमी तार
उरों में नव उमंग, तरंग जगेगी
और सजेंगे घर-घर में, दीपक-रोली के थाल
देकर कुछ उपहार हथेली में, बहना की
मुस्काएगा भाई, गुंजित होंगी सभी दिशाएं
बार-बार उत्सव यह आये !  

किन्तु दूर हैं जो भी प्रियजन
भेज राखियाँ, मधुर संदेशे
मना ही लेंगे रक्षा बंधन !
तिलक लगा मस्तक पर अपने
बाँध लीजिये राखी कर में
संग बंधी है शुभ कामना
पगी प्रीत में मधुर भावना
जीवन का हर पल सुखमय हो
हर इक उत्सव मंगलमय हो !

शुक्रवार, अगस्त 3

मोहन की हर अदा निराली




मोहन की हर अदा निराली


माधव केशव कृष्ण मुरारी
अनगिन नाम धरे हैं तूने,
ज्योति जलाई परम प्रेम की
अंतर घट थे जितने सूने !

दिया सहज प्रेम आश्वासन
युग-युग में कान्हा प्रकटेगा ,
सुप्त चेतना दबी तमस में
हर बंधन से मुक्त करेगा !

सच की आभा सुहृद बिखेरे
अनुपम प्रतिमा सुन्दरता की,
हर उर में रसधार उड़ेले
  हर अदा निराली मोहन की !

वृन्दावन भू रज पावन है
परम सखा बन रास रचाए,
विरह अनवरत मिलन बना है
नाता स्नेहिल सदा निभाए !

दिव्य जन्म शुभ कर्म अनेकों
हैंं अनंत गाथाएं तेरी,
सुन-सुन अश्रु बहे नयनों से
जाने कितनी छवि उकेरीं !