सोमवार, अक्तूबर 8

निज सुनहरी भाग्य रेखा




निज सुनहरी भाग्य रेखा


स्वप्न देखा,
उसी पल में खींच डाली
निज सुनहरी भाग्य रेखा !

एक अनुपम स्वप्न सुंदर
जागते चक्षु से मनहर
कांपते थे प्राण भीतर !

ख़ुशी के पीछे छिपी थी
एक शायद भीति रेखा
स्वप्न देखा !

हम करें साकार सपने
दाम उसका अक्स अपने 
वैश्य है कितना अनोखा !

हाथ में कूँची थमा वह
क्षीर सागर में बसा जा !
है अदेखा !


2 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी गहरी बाय कह दी ...
    हाथ में कूची थमा कर ... सच है ... स्वयं ही तो गढ़ना है ये जीवन ... इसने दिया है सब कुछ सोचने समझने की शक्ति ... विकास का पथ ... और फिर आह्वान किया स्वप्न के माध्यम से ...
    बहुत ही सुन्दर दार्शनिक रचना ...

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  2. वाकई सब कुछ मानव के अपने ही हाथ में है..स्वागत व आभार !

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