नया वर्ष
समय के अनंत प्रवाह में...
गुजर जाना एक वर्ष का, मानो
सागर में एक लहर का उठना
और खो जाना !
और इस दिन
लाखों की आतिशबाजी जलाना
उस दुनिया में ?
जहाँ लाखों घरों में अँधेरा
है
एक दिये के लिए भी नहीं है तेल
नया वर्ष तो तब भी आएगा,
जब हम कान फोड़ पटाखे नहीं जलायेंगे
नहीं खोएंगे होश आधी रात को
सडकों पर
अजीब रिवाज जन्म ले रहे हैं
शहर की हवा में
नये साल के पहले दिन
इच्छाओं की सूची बहुत लम्बी
होती है मनों में
तभी तो मन्दिरों के बाहर
पंक्तियाँ भी
दोपहर तक खत्म होने को नहीं
आतीं !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.1.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3318 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/01/2019 की बुलेटिन, " अख़बार की विशेषता - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसागर में लहरों का उठाना गिरना ही है नव वर्ष ...
जवाब देंहटाएंये आता है और चला जाता है पर बदलता नहीं कुछ भी ... इच्छाएं तो वैसे भी बहुत होती हैं जीवन में ... अच्छी रचना है ...
स्वागत व आभाार दिगम्बर जी !
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