पिता
पिता के लिए दुनिया एक अजूबा बन गयी है
जैसे कोई छोटा बच्चा देखता है हर शै को अचरज से
उनकी आँखें विस्मय से भर जाती हैं
झुर्रियों से अंदर छुप गयीं सी उनकी मिचमिचाती आँखों में
जब तब ख़ुशी का कमल खिल उठता है
जिसे देखकर संतानों का मन भी आश्वस्त हो जाता है
ठीक उसी तरह जैसे पिता बचपन में तृप्त होते थे
देख-देख उनके चेहरे की मुस्कान
वे उन्हें फेसबुक, गूगल, व्हाट्सएप से परिचित कराते हैं
नतिनी-पोते उन्हें मोबाइल के राज बताते हैं
कुछ देर नानुकर वह तत्पर हो जाते हैं
सीखने आधुनिक युग की भाषा
बटन दबाते पूरी होती कैसे हरेक की आशा
उनके अपने बचपन में धूल भरी गलियों में दौड़ते हुए मवेशी हैं
किसान हैं, बंटवारे की कटु स्मृतियाँ हैं
पर रहना सीख लिया है उन्होंने निपट वर्तमान में
माँ भी रह गयी हैं पीछे
शायद देखा हो कभी स्वप्नों में
जो कभी रही थीं साथ हर सुख-दुःख में
वे जी रहे हैं आज के हर पल के साथ कदम मिलाते
उनकी आवाज में अब भी वही रुआब है
जिसे सुनने के लिए उत्सुक है संतान
देखना चाहती है पिता के भीतर ऊर्जा का प्रवाह
जैसे कोई बच्चा बड़ों को धमकाए अपनी नादाँ प्यारी हरकतों से
तो वारी जाते हैं माँ-बाप
बच्चा आदमी का पिता होता है कवि ने सही कहा है
चक्र घूम रहा है कब बालक बन जाता है वृद्ध
कोई नहीं जानता
निमन्त्रण देते हैं सभी उन्हें अपने-अपने घर आने के लिए
नए-नए आविष्कार, नए स्थान दिखाने
सभी देखना चाहते हैं उनके चेहरे पर हँसी और मुस्कान
दिखाना, आधुनिक सुख-सुविधाओं से भरे मकान
पिता सन्तुष्ट हैं जैसे मिला हो कोई समाधान
ज्यादातर समय रहते हैं स्वयं में ही व्यस्त
किताबों और संगीत की दुनिया में मस्त
कभी अख़बार के पन्ने पलटते अधलेटे से
लग जाती है आँख भरी दोपहरी में
तो कभी जग जाते हैं आधी रात को ही
अल सुबह चिड़ियों के जगने से पूर्व ही छोड़ देते हैं बिस्तर
अपने हाथों से चाय बनाकर पी लेते
ताकत महसूस करते हैं वृद्ध तन में
फोन पर जब संतानें पूछती हैं हाल तबियत का
तो नहीं करते शिकायत पैरों में बढ़ती सूजन की
या मन में उठती अनाम आशंका की
दर्शन की किताबों में मिला जाता हैं उन्हें हर सवाल का जवाब
मुतमईन हैं खुद से और सारी कायनात से
कर लिया है एक एग्रीमेंट जैसे हर हालात से !
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिताजी का नवासीवां जन्मदिन है.