प्रेम
एक-दूजे को समझते हुए
एक दूजे को ऊपर उठाते हुए
साथ-साथ जीने का नाम ही प्रेम है
अहंकार तज कर हँसते-हँसते हर मान-अपमान को
सहने का नाम ही प्रेम है
दूसरे को प्रीतिकर हों ऐसे वचन ही मुख से निकलें
इस सजगता का नाम ही प्रेम है
सब कुछ साझा है इस जहाँ में
हर कोई जुड़ा है अनजान धागों से,
धरा, गगन, पवन, अनल और सलिल के साथ
जुड़ाव महसूस करने का नाम ही प्रेम है
मैत्री और साहचर्य का आनन्द लेने और बाँटने का नाम ही प्रेम है
मुक्त है यह प्रेम एकाधिकार से, दुःख और घृणा से
जो बाँधता नहीं मुक्त करता है
अनंत से मिलाने का दम रखता है
अंतर में शांति और आनंद भरता है
एक समन्वय, सामंजस्य और बोध का नाम ही प्रेम है !
बहुत सुंदर सृजन।
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/01/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
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धन्यवाद
जो बाँधता नहीं मुक्त करता है
जवाब देंहटाएंअनंत से मिलाने का दम रखता है
अंतर में शांति और आनंद भरता है
प्रेम की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन
बहुत बढ़िया
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