उन सभी बच्चों के नाम जिनका आज जन्मदिन है और जो घर से दूर हैं
सुख की फसल भीतर खिले
है गगन सीमा तुम्हारी
उसके पहले मत थमो,
बिखरी हुईं मन रश्मियां
इक पुंज अग्नि का बनो !
जब नयन खोले थे यहाँ
अज्ञात थी सारी व्यथा,
कुछ खा लिया फिर सो गए
इतनी ही थी जीवन कथा !
फिर भेद मेधा के खुले
सारा जगत पढ़ने को था,
थी हर कदम पर सीख कुछ
हर दिवस बढ़ने को था !
अनन्त है सभी कुछ यहाँ
अभाव केवल भ्रम ही है,
सीमित इसे हमने किया
मंजिल कदम-कदम ही है!
खुद का भरोसा नित करो
मन में न भय कोई पले,
है स्वप्न में जन्नत अगर
सुख की फसल भीतर खिले !
दूर घर से देश से भी
जन्मदिन पर लो दुआएं,
नव वर्ष बीते सुख भरा
मिल सभी यह गीत गाएं !
खुद का भरोसा नित करो
जवाब देंहटाएंमन में न भय कोई पले,
है स्वप्न में जन्नत अगर
सुख की फसल भीतर खिले !
बहुत सुंदर और सार्थक रचना 👌👌
स्वागत व आभार अनुराधा जी !
हटाएंसकारात्मक उमंग, नई दृष्टि की झलक आपकी रचनाओ में मिलती रहती है.
जवाब देंहटाएंगजब
जीवन हर पल हमें भर रहा है, हमारा इतना तो फर्ज है न कि सकारात्मकता फैलाएं !
हटाएंसदैव की तरह प्रेरणादायी सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसकारात्मकता से ओतप्रोत बहबहुत ही लाजवाब सृजन....
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
प्रोत्साहन के लिए आभार !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-02-2020) को 'सूरज कितना घबराया है' (चर्चा अंक - 3600) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसाकारात्मक ऊर्जा से भरपूर बेहतरीन सृजन ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंFantastic Content! It's very easy to understand. more:iwebking
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