सोये हैं हम...
बस जरा सी बात इतनी
सुख की चादर ओढ़ मन पर
खोये हैं हम
सोये हैं हम !
एक सागर रौशनी का
पास ही कुछ दूर बहता
पर तमस का आवरण है
कह इसे कई बार
यूँ ही रोये हैं हम…!
नींद में भी जागता मन
फसल स्वप्नों की उगाता
जाने कितने बीज ऐसे
बोये हैं हम !
नींद उसकी जागरण भी
चंचला मति आवरण भी
जाग देखें कैसी
भावना सँजोये हैं हम !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुन्दर विचारणीय...
जवाब देंहटाएंएक सागर रौशनी का
पास ही कुछ दूर बहता
पर तमस का आवरण है
कह इसे कई बार
यूँ ही रोये हैं हम…!
वाह!!!
स्वागत व आभार !
हटाएंवाह!बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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