खुल गए जो बंधन कब के
इक यादों की गठरी है
इक सपनों का झोला है,
जो इन्हें उतार सकेगा
उसमें ही सुख डोला है !
जो कृत्य हुए अनजाने
या जिनकी छाप पुरानी,
कई बार गुजरता अंतर
उन गलियों से अक्सर ही !
खुल गए जो बन्धन कब के
तज-तज कर पुनः पकड़ता,
ढंग यही आता उसको
उनमें खुद व्यर्थ जकड़ता !
सुख बन चिड़िया उड़ जाता
मन में ही जो उलझा है,
जब तक यह नहीं मिटेगा
यह जाल कहाँ सुलझा है !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 28 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुख बन चिड़िया उड़ जाता
जवाब देंहटाएंमन में ही जो उलझा है,
जब तक यह नहीं मिटेगा
यह जाल कहाँ सुलझा है !
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
वाह!!बेहतरीन सृजन !
जवाब देंहटाएंजाने कितने ही बंधन में जकड कर रह जाता है इंसान
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
वाह बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंअनीता जी आपकी रचनाओं में अध्यात्म और जीवन दर्शन का अनूठा तालमेल मन को शांति प्रदान कर जाता है सदैव।
सादर।
बेहतरीन कविता....
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