आकर ही रहता है प्रभात
हमें आकाश से उतारा गया
सड़कों से भगाया गया
रेल, बस, कार, साईकिल सभी हुए वर्जित
बाजार, मॉल, थियेटर से किये गए निष्कासित
किया गया कैद अपने ही घरों में
निर्वासित हुए हम नगरों, गाँवों से
थम गए हैं घर-आंगन में कदम
जिसकी कद्र करना भूल गए थे हम
बन गया था जो
केवल एक रात्रि आश्रय स्थल
जहाँ से भागा फिरते थे, ढूंढते कुछ राहत के पल
आदत हो गयी थी शहर-शहर घूमने की
पर्यटन स्थलों पर कितनी भीड़ जमा कर दी
हमने घरों को साफ रखा
पर बाजारों को गंदा किया
पहाड़ों को मैला किया
नदियों, जंगलों की नैसर्गिकता को हर लिया
हमने धन को विलासता में उड़ाना चाहा
पर प्रकृति कुछ और ही चाहती थी
उसने हमें सत्य से अवगत कराया
हमें अपनी सीमा दिखाई
लाखों बेघरों की मजबूरी से मिलवाया
अपने ही देश में पनप रही
दकियानूसी सोच से रूबरू करवाया
स्वच्छता की नई परिभाषा सिखाई
जीने की नई राह दिखाई
परिवार को जोड़ने का मन्त्र दिया
एक सुखमय सादी जीवनशैली का सूत्र दिया
माना कोरोना ने छीन लिया है मानवता से बहुत कुछ
थोड़ा सा लौटाया भी है
मेडिकल प्रोफेशन को सम्मान खोया हुआ
पुलिस को एक नए अवतार में प्रस्तुत किया
केंद्र व राज्यों में एका सिखाया
देशवासियों को एक सूत्र में बाँधा
अभी लड़नी है एक लम्बी लड़ाई
नई ऊर्जा और विश्वास के साथ
अँधेरा कितना भी घना हो
आकर ही रहता है प्रभात !
यह आशावादी स्वर कुछ आश्वस्त कर गया.साधुवादयय !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रतिभा जी !
हटाएंसार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी !
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