बुधवार, मई 6

लॉक डाउन में ढील

लॉक डाउन में ढील


ग्रीन, रेड और ऑरेंज जोंस में 
अब  बंट गए हैं लोग 
लगता है, विभाजन ही मानव की नियति है 
ग्रीन में आजादी अधिक है 
जिंदगी पूर्ववत होने का आभास दे रही है 
अति उत्साह में लोग भूल जाते हैं 
चेहरे पर मास्क लगाना 
और दो गज की दूरी बनाये रखना 
वे इस तरह बाहर निकल आये हैं 
जैसे पिंजरों से पंछी 
सब्जी-फल की दुकानों से ज्यादा 
लगी हैं लंबी-लंबी कतारें 
उन दुकानों पर, 
जहाँ मस्ती और चैन के नाम पर 
जहर बिकता है 
पर नशे का व्यसन उन्हें विवश करता है 
अथवा वे डूब जाना चाहते हैं 
जीवन की वास्तविकताओं को भुलाकर 
किसी ऐसे लोक में 
जहाँ न नौकरी जाने का गम है 
न कोरोना से ग्रस्त हो जाने का 
वे चैन की नींद सो सकेंगे चंद घण्टे शायद बेहोशी में 
काश ! कोई उन्हें बताये 
एक चैन और भी है, जो बेहोशी में नहीं 
होश में मिलता है 
जिसे पाकर ही दिल का कमल पूरी तरह खिलता है 
जहाँ टूट जाती हैं सारी सीमाएं 
मन उलझनों से पार... खुद से भी दूर लगता है 
यह अनोखा नशा ध्यान का 
ऊर्जा से भरता है 
और यह बिन मोल ही मिलता है !


3 टिप्‍पणियां:

  1. आज के समय में अर्थव्यवस्था को सहारा सिर्फ शराब ही दे सकती है। बाकी सब तो व्यर्थ हो चला है।

    सादर

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