चमत्कार
कृष्ण की कथा चमत्कारों से भरी है !
पर हमारी कथा भी उनसे रिक्त है कहाँ ?
कौन करता रहा
सदा विपदाओं में सुरक्षा
किसने संयोग रचे, जो मन के मीत मिले
किसके इशारे पर, अंतर कमल खिले !
कौन खुद की राह पर लिए जाता है
यह जीवन भी चमत्कार से कम नहीं
जहाँ कोई ठान ले खुश रहना तो
उसके लिए कोई गम नहीं रह जाता है !
यहाँ बाहर जल गंगा.. भीतर वाक् गंगा
अनवरत रहती है
कभी चुप हो जाता मन तो जान लेता
भीतर प्रेम धारा बहती है
जिसकी मधुर ध्वनि को बाद में वाणी
अनुवादित करती
प्रकृति एक नियम से चलती
यह सृष्टि अनादि काल से
ऐसे ही बनती-बिगड़ती है !
सत्य वचन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंप्राकृति की रफ़्तार ओनी ही है उसे कौन रोक सका है ... अनादी काल से कोई नहीं शायद ...
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