मोह और प्रेम
जहाँ छूट ही जाने वाला है
सब कुछ एक दिन
वहाँ कर सकता है मोह
कोई मदहोश होकर ही
जहां काल चारों ओर
अपने विकराल पंजे फैलाये खड़ा है
वहाँ संग्रह किसका करें
जो मृत्यु के बाद भी नहीं मरता
उसे क्या चाहिए ?
जो छूट ही जायेगा
उसे कौन सहेजे
पैरों में क्यों बांधें जंजीरें
हजार वस्तुओं के संग्रह से
पंछी को उड़ ही जाना है
तो क्यों लगन लगायेगा
पिंजरे से
चाहे सुवर्ण का ही हो
पिंजरा तो पिंजरा है
सुख जोड़ने में नहीं छोड़ने में है
मुक्त हृदय से हर बन्धन तोड़ने में है
प्रेम तो स्वभाव है स्वयं का
वह हर आग में जलने से बच ही जायेगा
जिसे साथ जाना है
वह किसी भांति मिटाया न जायेगा !
अनिता जी मोह और प्रेम का अंतर जितना विराट है उतना महीन भी है | बहुत ही सूक्ष्मता से इस अंतर को स्पष्ट करती बेहद भावपूर्ण और सार्थक रचना के लिय कोटि आभार | हार्दिक शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंरचना को इतनी गहराई से ग्रहण करने के लिए आभार रेणु जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबंधन तोड़ने में सुख तो है लेकिन यह इतना आसान भी नहीं।
जवाब देंहटाएंसादर
सही कहा है आपने, किन्तु जब तक बंधन बंधन लगना आरंभ न हो तभी तक, स्वागत व आभार !
हटाएंसही है प्रेम अनंत है ... प्रवाहित होता रहता है अनन्त तक ...
जवाब देंहटाएं