बैठ हवा के पंखों पर ही
सर-सर मर्मर पवन बह रही
ठंड अति कभी ताप सह रही,
शीतलहर में ठिठुराती तन
स्वेद बहे यदि तप्त हो गयी !
कभी धूलि का उठे बवंडर
छूकर आती कभी समुन्दर,
चलती कभी पवन पुरवाई
मंद झँकोरा अति सुखदायी !
हवा जलाती, हवा बुझाती
हवा उड़ाती, हवा सुखाती,
प्राणों का आधार हवा है
जीवन का भी द्वार हवा है !
प्रातः समीरण अति सुखदायी
हौले से सहलाने आती,
बेला, चंपा की सुवास भर
रजनी गंधा को महकाती !
झूम रहे जब खेत बाग वन
दृश्य अति लगते वे मनोहर,
हवा डुलाती हौले-हौले
झूमें लहरें झील, नदी पर !
बासों से हो हवा गुजरती
सांय-सांय का गीत गूँजता,
छम-छम पत्तों का भी नर्तन
संग पवन तृण गगन चूमता !
संग पवन के उड़ते-उड़ते
बीज सुदूर यात्रा करते,
बैठ हवा के पंखों पर ही
यहाँ-वहाँ गिर भू पर उगते !
पंच प्राण प्राणी के भीतर
गतियां सब संचालित करते,
वायु बिना सब स्थिर हो जाये
वायुदेव ही जीवन भरते !
हवा बदलियों को ले जाती
जीवन का आधार बनी है,
कोमल शीतल परस पवन का
महादेव का महाभूत है !
अति सूक्ष्म तत्व प्रवाह रूपी
भूमंडल को घेरे रहती,
जैसे अपने आँचल में ले
शिशु को माँ संभाले रहती !
हर सू हवा ... प्राण वायु का गुणगान जो भो मंडल नहीं प्राकृति को भी जीवित रखती है ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसु न्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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