गुरुवार, नवंबर 12

लो फिर आयी विमल दीवाली

 लो फिर आयी विमल दीवाली 

जगमग दीप जले पंक्ति में 

बन्दनवार लगे हर द्वारे 

सजी दिवाली महके जन पथ 

तोरण सजे गली चौबारे 

उठी सुगन्ध गुजिया, मोदक की 

वस्त्र नए देहों पर सरसर

लगी झालरें जली बत्तियां 

थाल सजे पूजा के मनहर 

सजे विनयाक, धान्य लक्ष्मी 

राग जगाती सुख बरसाती 

लो फिर आयी विमल दीवाली 

स्वच्छ हुए सबके घर आंगन 

भर उमंग से चहके सब मन 

कोमल भाव भरे अंतर में 

निकले बाल, युवा, सजधज कर 

नहीं अभाव सताता कोई 

देने का संकल्प जगा है 

दूर हुआ अँधियारा सारा 

रससिक्त हर भाव पगा है 

सुख की लहर उठी सागर में 

पावन पवन देवता बहते

दिग-दिगन्त में करुणा बसती

सूर्यदेव भी सुखमय लगते 

ऋतु मोहक माह शरद कार्तिक 

हरा रोग आरोग्य सफल है 

भारत भू का पर्व अनोखा 

ज्योतिपर्व यह अति मंगल है !


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    रूप-चतुर्दशी और धन्वन्तरि जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  2. नमस्ते
    आपको दीपावली सपरिवार शुभ और मंगलमय हो।

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