मंगलवार, नवंबर 17

खत

खत 

किसी सूनी शाम को 

हथेलियों पर ठोड़ी टिकाये 

लिखने वाली मेज पर बैठे 

कोई बात फड़फड़ायी होगी तुम्हारे मन में 

लिखो फिर काट दो 

तकते रहो  निरुद्देश्य दीवार को 

अपनी आवाज को 

सुनने का प्रयत्न करते 

आँखों से दो कतरे शबनम के ढुलक कर 

बैठ गए होंगे कापी पर

कैसा सम्बोधन  ! अनोखा भीगा सम्बोधन 

अभिवादन के लिए सारा शब्दकोश 

ढूंढ आया होगा तुम्हारा मस्तिष्क 

कि बाहर से अकेले पक्षी की 

हूक सिमट आयी होगी कमरे में 

.. उस कागज में 

और एक लिफाफा तैयार !  

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. ख़त लिखने के दौर में मन की उलझन को जीवन्त रूप में साकार करती अप्रतिम भावाभिव्यक्ति ।

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  2. कोई बात फड़फड़ायी होगी तुम्हारे मन में
    लिखो फिर काट दो..।अनुभूति का सुंदर सृजन..।

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  3. आप सभी सुधी जनों का स्वागत व आभार !

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19
    नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. तकते रहो निरुद्देश्य दीवार को

    अपनी आवाज को

    सुनने का प्रयत्न करते

    आँखों से दो कतरे शबनम के ढुलक कर

    बैठ गए होंगे कापी पर
    वाह!!!

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