आदमी
कली
क्या करती है फूल बनने के लिए
विशालकाय
हाथी ने क्या किया
निज
आकार हेतु
व्हेल
तैरती है जल में टनों भार लिए
वृक्ष
छूने लगते हैं गगन अनायास
आदमी
क्यों बौना हुआ है
शांति
का झण्डा उठाए
युद्ध
की रणभेरी बजाता है
न्याय
पर आसीन हुआ
अन्याय
को पोषित करता है
अन्न
से भरे हैं भंडार चूहों के लिए
भूखों
को मरने देता है
पूरब
पश्चिम और पश्चिम पूरब की तरफ भागता है
शब्दों का मरहम बन सकता था
उन्हें हथियार बनाता है
एक मन को अपने ही
दूसरे मन से लड़वाता है
लहूलुहान
होता फिर भी देख नहीं पाता है
यह अनंत साम्राज्य जिसका है
वह बिना कुछ किए ही कैसे विराट हुआ जाता है !
एक मन को अपने ही
जवाब देंहटाएंदूसरे मन से लड़वाता है
लहूलुहान होता फिर भी देख नहीं पाता है
यह अनंत साम्राज्य जिसका है
वह बिना कुछ किए ही कैसे विराट हुआ जाता है !
बहुत सही अनीता दी..।यथार्थपरक रचना..।
कविता के मर्म को समझकर त्वरित प्रतिक्रिया हेतु आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआदमी क्यों बौना हुआ है---- बिलकुल सच लिखा है आपने | बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25 नवंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सत्य कहा ... आदमी आँख होकर भी अंधा है तब तो विराट अस्तित्व दिखाई नहीं देता है ।
जवाब देंहटाएंशब्दों का मरहम बन सकता था
जवाब देंहटाएंउन्हें हथियार बनाता है
एक मन को अपने ही
दूसरे मन से लड़वाता है.....सही चित्रण, सुन्दर विचारणीय रचना!
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंन्याय पर आसीन हुआ
जवाब देंहटाएंअन्याय को पोषित करता है
अन्न से भरे हैं भंडार चूहों के लिए
भूखों को मरने देता है
वास्तविकता