चेतना हर हल बनेगी
आग
भीतर जो जलाती
पथ
प्रदर्शक भी वही है,
अश्रु
बनकर जल बहा जो
मनस
शोधक भी वही है !
शोक
पाहन सा चुभे जो
पाँव
की सीढ़ी बनेगा,
घन
विपत्ति का अंधेरा
एक
दिन सूरज बनेगा !
गर
कोई संघर्ष न हो
सुवर्ण
न कुंदन बनेगा,
बिना
मंथन सिंधु से भी
क्योंकर
मधु अमृत झरेगा !
तप
रही जो आज माटी
नीर
कल धारण करेगी,
प्रश्न
बनकर जो खड़ी है
चेतना
हर हल बनेगी !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क