हरेक शै के दो पहलू हैं जनाब
'जो' है खुशी का सबब किसी के लिए
कुछ उससे ही दुखों के वस्त्र सिले जाते हैं
जमाने में फूल भी तो खिलते हैं
महज फितरत से कांटे ही चुने जाते हैं
दी है खुदा ने पूरी आजादी
कोई जन्नत, कुछ जहन्नुम से दिल लगाते हैं
शब्द सारे उन्हीं स्वर-वर्ण से बने
कोई वंदन तो कुछ क्रंदन में पिरोते हैं
मिले हर माल कुदरती बाजार में
कोई सुकून तो कुछ झंझट लिए जाते हैं
नजर अपनी ही धुंधली है मगर
इल्जाम जमाने को दिए जाते हैं
नजर बदली तो नजारे बदलते
रंगीन चश्मे लगा श्वेत शै चुने जाते हैं
मुक्कमल आकाश छिपाए भीतर
लोग पिंजरों में जिंदगी बिताए जाते हैं
दरिया बहते समंदर ठाठें मारे
जाने क्यों प्यास दिल से लगाए जाते हैं
कौन कहता है, रब नहीं, बुद्ध ने कहा
स्वयं बंद आँखों में बसाए जाते हैं !
वाह
जवाब देंहटाएं'जो' है खुशी का सबब किसी के लिए
जवाब देंहटाएंकुछ उससे ही दुखों के वस्त्र सिले जाते हैं
जमाने में फूल भी तो खिलते हैं
महज फितरत से कांटे ही चुने जाते हैं
--बहुत खूब!
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंनजर अपनी ही धुंधली है मगर
जवाब देंहटाएंइल्जाम जमाने को दिए जाते हैं
नजर बदली तो नजारे बदलते
रंगीन चश्मे लगा श्वेत शै चुने जाते हैं....बहुत ख़ूब दी..सुंदर अभिव्यक्ति..।
मुक्कमल आकाश छिपाए भीतर
जवाब देंहटाएंलोग पिंजरों में जिंदगी बिताए जाते हैं
बेहतरीन रचना ...💐
कौन कहता है, रब नहीं, बुद्ध ने कहा
जवाब देंहटाएंस्वयं बंद आँखों में बसाए जाते हैं !
श्रेष्ठ रचना। 🙏🌹🙏
नजर अपनी ही धुंधली है मगर
जवाब देंहटाएंइल्जाम जमाने को दिए जाते हैं
सुंदर सृजन....
नजर अपनी ही धुंधली है मगर
जवाब देंहटाएंइल्जाम जमाने को दिए जाते हैं
नजर बदली तो नजारे बदलते
रंगीन चश्मे लगा श्वेत शै चुने जाते हैं..
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
सुशील जी, कविता जी, ओंकार जी, जिज्ञासा जी, विकास जी, डा वर्षा, डा शरद और सुधा जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
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