चिदाकाश में भरे उड़ान
मोह तमस का जाल बिछा है
हंस बना है उसका कैदी,
सुख के दाने कभी-कभी हैं
उहापोह है घड़ी-घड़ी की !
टूटे जाल मुक्त हो हंसा
चिद आकाश में भरे उड़ान,
गीत गूँजते कण-कण में जो
सुनकर मगन हुआ अनजान !
देह में रह विदेह बना जो
राज वही जीवन का जाने,
जल में नाव, नाव में जल ना
यही कह गए सभी सयाने !
देह छूटती जाती पल-पल
इक दिन उड़ कर जाना होगा,
तब तक जग का मेला देखेँ
जो ना कभी पुराना होगा !
ज्योति मिले ज्योति संग जिस पल
याद उसी की बनी रहे उर,
सहज नदी यह बहती जाती
पहुँचेगी इक दिन तो सागर !
बहुत सुन्दर और सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार !
हटाएंदेह छूटती जाती पल-पल। वाह! बहुत सही।सादर आभार।
जवाब देंहटाएंदेह छूटती जाती पल-पल
जवाब देंहटाएंइक दिन उड़ कर जाना होगा,
तब तक जग का मेला देखेँ
जो ना कभी पुराना होगा !
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन।
आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भाव लिए शाश्र्वत सा चिंतन ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
वाह!बहुत ही सुंदर दी।
जवाब देंहटाएंमुग्ध करती सुन्दर रचना। देह में रह विदेह बना जो
जवाब देंहटाएंराज वही जीवन का जाने,
जल में नाव, नाव में जल ना
यही कह गए सभी सयाने !
अति सुन्दर उड़ान ।
जवाब देंहटाएंnice
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