बुधवार, दिसंबर 16

चिदाकाश में भरे उड़ान

चिदाकाश में भरे उड़ान 

मोह तमस का जाल बिछा है 
हंस बना है उसका कैदी, 
सुख के दाने कभी-कभी हैं 
उहापोह है घड़ी-घड़ी की !

टूटे जाल मुक्त हो हंसा 
चिद आकाश में भरे उड़ान, 
गीत गूँजते कण-कण में जो 
सुनकर मगन हुआ अनजान ! 

देह में रह विदेह बना जो 
राज वही जीवन का जाने, 
जल में नाव, नाव में जल ना  
यही कह गए सभी सयाने !

देह छूटती जाती पल-पल 
इक दिन उड़ कर जाना होगा, 
तब तक जग का मेला देखेँ 
जो ना कभी पुराना होगा !

ज्योति मिले ज्योति संग जिस पल  
याद उसी की बनी रहे उर, 
सहज नदी यह बहती जाती 
पहुँचेगी इक दिन तो सागर !
 

17 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"


    जवाब देंहटाएं
  3. देह छूटती जाती पल-पल। वाह! बहुत सही।सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. देह छूटती जाती पल-पल
    इक दिन उड़ कर जाना होगा,
    तब तक जग का मेला देखेँ
    जो ना कभी पुराना होगा !
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. आध्यात्मिक भाव लिए शाश्र्वत सा चिंतन ।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  7. मुग्ध करती सुन्दर रचना। देह में रह विदेह बना जो
    राज वही जीवन का जाने,
    जल में नाव, नाव में जल ना
    यही कह गए सभी सयाने !

    जवाब देंहटाएं