सांझी धरती गगन एक है
है सृष्टि क्रम अनंत काल से
चाँद-सितारे भी युग-युग से,
किन्तु पुरातन कभी न होते
पल-पल खुद को नूतन करते !
जंगल, वन, पर्वत, पठार भी
मृत होकर नव जीवन धरते,
सिन्धु पुन: पुन: हो आप्लावित
बादल नित नव सर्जन करते !
पशु, पंछी, मानव के तन भी
जन्मते, गिरते, पुन: पनपते,
किन्तु एक से सब दुनिया में
मन को इक चौखट में रखते !
अपना-अपना खुदा लिए हर
मन न स्वयं को कभी बदलता,
धर्म-जातियों के नामों पर
अब भी भीतर नफरत रखता !
जाने क्या हासिल कर लेगें
अब भी रक्त बहाया करते,
नए वर्ष में यही सिखाने
जगत घिरा सांझी पीड़ा से !
सांझे सुख-दुख हैं दुनिया के
सांझी धरती, गगन एक है,
एक ही रब है एक चेतना
नाम-रूप धारे अनेक है !
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंजाने क्या हासिल कर लेगें
जवाब देंहटाएंअब भी रक्त बहाया करते,
नए वर्ष में यही सिखाने
जगत घिरा सांझी पीड़ा से !
इतनी चेतावनी के बाद भी यदि हम सम्भल जाए तो गनीमत है।
बहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी ,आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
नए वर्ष में नव चेतना का संचार करते सुंदर सारगर्भित छंद..।नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना सहित..जिज्ञासा सिंह ।
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जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें....
🙏नववर्ष 2021 आपको सपरिवार शुभऔर मंगलमय हो 🙏
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें अनीता जी
जवाब देंहटाएंसांझे सुख-दुख हैं दुनिया के
जवाब देंहटाएंसांझी धरती, गगन एक है,
एक ही रब है एक चेतना
नाम-रूप धारे अनेक है !
वाह, सुंदर रचना.. 🌹
नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं ⭐🌹🙏🌹⭐
बहुत सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअपना-अपना खुदा लिए हर
जवाब देंहटाएंमन न स्वयं को कभी बदलता,
धर्म-जातियों के नामों पर
अब भी भीतर नफरत रखता !
यथार्थ को आईना दिखती इस कविता के लिए साधुवाद 🙏🏻☘️🙏🏻
ओंकार जी, जिज्ञासा जी, डा वर्षा, शांतनु जी, डा शरद, अलकनंदा जी, यशवंत जी व पुरुषोत्तम जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
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