मानव में खुद छुपा चितेरा
महायज्ञ सृष्टि का अनोखा
शुभ पंचतत्व आहुति देते,
इक-दूजे में हुए समाहित
रूप अनेकों फिर धर लेते !
जल में पावक, वायु गगन में
भू में रहते सभी समाए,
भव्य महान प्रपंच रचा है
पंछी,पशु, प्राणी जनमाये !
मानव में खुद छुपा चितेरा
जिसने रच डाला यह आलम,
उसके द्वारा भी करवाता
बड़े-बड़े अनगिन आयोजन !
सिर पर छप्पर, अन्न क्षुधा हित
शिक्षा और स्वास्थ्य के साधन,
कोई भय से न कंपता हो
हर कोई पाए अपनापन !
तन-मन स्वस्थ बनें जन-जन के
यही परम का इक सपना है ,
है सामर्थ्यवान जो जग में
औरों का दुख ही हरना है !
निज की खातिर बहुत जी लिए
अब औरों हित जीना सीखें,
जगती के इस महा हवन में
स्वयं पावन आहुति सौंपें !
आध्यात्मिक भावों से सम्पन्न मानव कल्याण की चाह लिए मनमोहक सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसच है कि मनुष्य तो बस एक मात्र साधन है आयोजन पूरा करने का ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ।
परहिताय भावों को उच्च समर्थन देती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर मोहक सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर