शुक्रवार, मार्च 26

भोर-रात्रि

भोर-रात्रि 


हर सुबह एक नयी कहानी सुनाती है 

हर रात हम अतीत की केंचुल उतार

अस्तित्त्व को सौंप देते हैं स्वयं को 

ताकि वह नया कर सके हमें 

जो तीनों तापों से मुक्त करे 

वही रात्रि है, जो मन को पुनर्नवा करे !

हर दिन कुछ नया पथ तय करना है 

क्योंकि बस आगे ही आगे बढ़ना है 

थोड़ा सा और प्रेम 

और करुणा उस अनंत कोष से लेकर लुटानी है 

थोड़ी सी और समझदारी उस सविता देव से पानी है 

आज वाणी को और मधुर बनाया जा सकता है 

किसी बच्चे को रोते से हँसाया जा सकता है 

एक और दिन मिला है जब 

नए कुछ वृक्ष रोप सकें भू में 

नए कुछ गीत और बिखेर सकें आलम में 

सुरों को और सजीला किया जा सकता है 

रंगों को कैनवास पर किसी और ढंग से 

बिखेरा जा सकता है 

कितना कुछ है जो एक दिन में समा जाता है 

हर रोज एक पूरा जीवन जिया जा सकता है 

हर रात जैसे पुनः हमें तैयार करती है 

स्वप्नों के बहाने कुछ पुरानी यादें मिटाती

नए ख्वाब भरती है !

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ अनीता जी । हर रोज एक पूरा जीवन जिया जा सकता है । इस कविता में आपने जो कहा, सही कहा ।

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  2. सही कहा आपने। एक दिन अपने आप में बहुत सारे उतार-चढ़ाव लिये होता है।

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