जहां कुछ भी नहीं था
वहीं सब कुछ हुआ है,
जहां इक सोच भर थी
वहाँ जग ये बना है !
तू ही वहाँ नजर आया था
जिसकी आँखों में भी झाँका
तू ही वहाँ नजर आया था,
बता, उस घड़ी क्या तूने भी
मुझमें खुद को ही पाया था ?
जो करना चाहा है दिल ने
सदा कहाँ कर पाए हैं हम,
ना करने की जिसे कसम ली
वहीं खड़ा खुद को पाया थम !
इससे अच्छा यह ही होता
जो सहज घटे घटने देते,
हम जीवन को, अपनी लय में
अपनी धुन में बहने देते !
बहुत उत्तम।
जवाब देंहटाएंमनोभावों का सुन्दर चित्रण।
स्वागत व आभार शास्त्री जी !
हटाएंकविता के रूप में बहुमूल्य जीवन-दर्शन को स्वर दिया है अनीता जी आपने । मुझे आपकी यह कविता बहुत पसंद आई । अभिनंदन आपका ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार !
हटाएंवाह अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंइससे अच्छा यह ही होता
जवाब देंहटाएंजो सहज घटे घटने देते,
हम जीवन को, अपनी लय में
अपनी धुन में बहने देते !
बस यही तो सार है जीवन का ... सहज सरल बहते रहें ...
सही है, स्वागत व आभार!
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