मधुर याद बनकर रह जाते
महाशून्य में जो खो जाते
मधुर याद बनकर रह जाते !
जीवन रण में विजयी हो भी
हो आहत जो बाट जोहते,
कालदेव अंतिम पीड़ा हर
हर बंधन से मुक्ति दिलाते !
छोड़ जगत यह वापस जाते
मधुर याद बनकर रह जाते !
जग मेले में आकर मिलते
सँग-सँग खुशियां सोग बांटते,
इक दूजे का स्नेह पात्र बन
बढ़ते, पलते, और पनपते !
इक झटके में गुम हो जाते
मधुर याद बनकर रह जाते !
दुनिया एक सराय अनोखी
अनगिन आते, अनगिन जाते,
आते-जाते ही रिश्तों की
सरस डोर से क्यों बँध जाते !
नीड़ त्याग नव नीड़ सजाते ?
मधुर याद बनकर रह जाते !
या फिर कारगार है दुनिया
सजा काटने ही हम आते,
जब जिसकी सजा पूरी हुई
कारावास से मुक्ति पाते !
तोड़ें बंधन फिर उड़ जाते
मधुर याद बनकर रह जाते !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर ( 3034...रात की सियाही को उजाले से जोड़ोगे कैसे...?) गुरुवार 20 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंआपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. ऐसे ही आप अपनी कलम को चलाते रहे. Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
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जवाब देंहटाएंदुनिया एक सराय अनोखी
अनगिन आते, अनगिन जाते,
आते-जाते ही रिश्तों की
सरस डोर से क्यों बँध जाते !
नीड़ त्याग नव नीड़ सजाते ?
मधुर याद बनकर रह जाते ! यथार्थपूर्ण जीवन दर्शन ।
इस दुनिया के मेले की सुन्दर झांकी प्रस्तुत की !
जवाब देंहटाएंचिंतन देते गहन भाव , अभिनव सृजन।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। इंसान खट्टी-मीठी यादें छोड़ कर निकल पड़ता है फिर एक नए नीड़ की ओर और ऐसे ही यह सिलसिला अविरल चलता रहता है।
जवाब देंहटाएंसही कहा
जवाब देंहटाएंयूँ तो दुनिया में आना जाना लगा ही रहता । बस यादें मधुर होनी चाहिये । सुंदर रचना
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