गुरुवार, मई 27

बदलती भूमिका


बदलती भूमिका


बदल रही हैं भूमिकाएँ कोरोना काल में 

सुबह-सवेरे उठकर रसोई घर संभालते

फिर हाट-बाजार, करते मोल-तोल सब्जियों का 

कपड़े सुखाने, सफाई करने में भी परहेज नहीं रहा 

फोन पर रेसिपी का आदान-प्रदान करते भी

 देखा जा सकता है आजकल उन्हें 

आधी रात को उठकर बच्चों को सुला भी देते 

और स्त्रियां आजादी की साँस ले रही हैं 

वह घर में बैठकर कनेक्टेड हैं दुनिया-जहान से 

वर्क फ्रॉम होम ने उन्हें दी है फुर्सत 

वरना सुबह भागते हुए गुजरती थी 

घर का काम अकेले ही निपटा कर 

ऑफिस के लिए निकलती थीं 

पापा दिन भर रहते हैं घर पर 

अब वह भी माँ की तरह लगते हैं बच्चों को 

शिकायत का डर नहीं रहा अब 

मिल बैठ कर सब हँसते हैं !

पुरुषों ने सम्भाल ली है घर की कमान 

लॉक डाउन का एक असर यह भी है कि 

उनका रुतबा हो गया है कुछ हद तक समान !



 

7 टिप्‍पणियां:

  1. शिकायत का डर नहीं रहा अब

    मिल बैठ कर सब हँसते हैं !

    पुरुषों ने सम्भाल ली है घर की कमान

    लॉक डाउन का एक असर यह भी है कि

    उनका रुतबा हो गया है कुछ हद तक समान !--बहुत अच्छी रचना है अनीता जी...बहुत खूबसूरत।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी हाँ लॉकडाउन का सकारात्मक पक्ष भूमिकाओं का बदलना तो रहा ही है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बिल्कुल सही लिखा आपने ।सार्थक सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ कुछ सही। परंतु कहीं कहीं स्त्रियों का काम बढ़ गया है।

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. बिलकुल सही कहा है ...
    हर कोई अब सब काम करने लगा है ... हम भी कर याहे हैं सब कुछ ...

    जवाब देंहटाएं