शनिवार, जून 5

अम्बर नीला का नीला है

अम्बर नीला का नीला है 


माना दुःख भारी है जग में 

उर आनंद अनंत छुपा है, 

कितने भी तूफां उठते हों 

अंतर हर तूफ़ां से बड़ा है !


मृत्यु हजारों रूप धरे पर 

जीवन पल-पल प्रकट रहा है, 

क्या बिगाड़ पाएगी उसका 

जो स्वयं मरकर पुनः जगा है !


बादल चाहे घटाटोप हों 

अम्बर नीला का नीला है, 

महल दुमहल धराशायी हों 

भूमिकंप से गगन बचा है !


लहरें लाख उठे सागर में 

सागर से वे बड़ी नहीं हैं, 

विपदाएं हर कदम खड़ी हों  

फिर भी पथ पर अड़ी नहीं हैं !


दुःख काल्पनिक हो सकते हैं 

सुख लेकिन उस परम से आता, 

सत्य वही है सदा टिके जो 

गहन नींद में दुःख न सताता !




 

10 टिप्‍पणियां:

  1. उस परम पर आस ही जीवन है !!सार्थक रचना !!

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  2. बादल चाहे घटाटोप हों

    अम्बर नीला का नीला है,

    महल दुमहल धराशायी हों

    भूमिकंप से गगन बचा है !

    आप की रचनाएँ निराश मन में भी ऊर्जा का संचार करती है। आज के समय में निराशों से भरी नहीं बल्कि आशा,विश्वास और ऊर्जा जगाने की ही जरूरत है। सकारात्मकता फैलाने की जरूरत है ,सादर नमन आपको

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  3. बहुत सुंदर रचना आदरणीया

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  4. दुःख काल्पनिक हो सकते हैं
    सुख लेकिन उस परम से आता,
    सत्य वही है सदा टिके जो
    गहन नींद में दुःख न सताता !
    गहन चिंतन के साथ बहुत सुन्दर सृजन ।

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  5. जो मर कर जागता है वो इस प्राकृति के साथ हो जाता है ... अनंत से सामंजस्य करके जॉन मरता है ... बहुत सुंदर ...

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  6. बहुत बहुत आभार कामिनी जी !

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  7. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

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  8. जीवन दर्शन और चिंतन का सुंदर समन्वय स्थापित करती रचना ।

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