फिर सुनहली भोर आयी
पंछियों के स्वर अनोखे
बोल जाने भरे कैसे,
क्या सुनाते गा रहे हैं
भोर होते गूंजते से !
तोड़ते निस्तब्धता जो
यामिनी भर रही छायी,
दे रहे संदेश मानो
फिर सुनहली भोर आयी !
कूक कोकिल की सुरीली
चेतना में प्राण भरती,
उल्लसित उर सहज होता
रात का ज्यों अलस हरती !
कंठ में सुर कौन भरता
वाग्देवी ! वाग्देवी !
कह रहे हर बोल में वे
कर रहे ज्यों वंदना ही !
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 13.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह! अत्यंत मनोहारी रचना!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत प्यारी और मनमोहक रचना!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!
हटाएंबेहतरीन रचना आदरणीया।
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