गीता
सत् के आधार पर ही
असत् की नौका डोलती है
कभी दिखती
कभी हो जाती ओझल
खुद अपना भेद खोलती है
विशालकाय तारे भी
टूटा करते
जन्मे थे जो एक दिन
इसी अंतरिक्ष में
जो अजन्मा है
गीता बात उसी की बोलती है
स्वप्न की तरह मिट जाएगा
यह जीवन किसी पल
है चिन्मय जो आधार
आँख उसके प्रति खोलती है
डर-डर कर व्यर्थ ही जीता है मन
अभय की सुवास
सहज ही घोलती है !
बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंउठ जाग रे निर्भीकमना
जवाब देंहटाएंतेरी राह ताके है प्रात !!
सुंदर अभिव्यक्ति !!
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
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