श्रद्धा का फूल
श्रद्धा का फूल
जिस अंतर में खिलता है
प्रेम सुरभि से
वही तो भरता है !
बोध का दिया जलता
अविचल, अविकंप वहाँ
समर्पण की आँच में
अहंकार ग़लता है !
श्रद्धा का रत्न ही
पाने के काबिल है
स्वप्न से इस जगत में
और क्या हासिल है
आनंद की बरखा में
भीगता कण-कण उर का
सारी कायनात
इस उत्सव में शामिल है !
हरेक ऊहापोह से
श्रद्धा बचाती है
चैन की एक छाया
जैसे बिछ जाती है
जो नहीं करे आकलन
नहीं व्यर्थ रोकटोक
श्रद्धा उस प्रियतम से
जाकर मिलाती है !
श्रद्धा का दीप जले
अंतर उजियारा है
हर घड़ी साथ दे
यह ऐसा सहारा है
अकथनीय, अनिवर्चनीय
जीवन की पुस्तक को
इसने निखारा है !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहरेक ऊहापोह से श्रद्धा बचाती है....
जवाब देंहटाएंसचमुच, श्रद्धा और विश्वास के दीप हर अँधेरे को उजाले से भर देते हैं। पावन भावनाओं से सजा सुंदर गीत।
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंमन में श्रद्धा का भाव प्रेम को अग्रसर करता है और नव दीप जलाने को परिर करता है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
स्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंतभी तो गोस्वामीजी ने मानस में कहा है, "भवानी शंकरौ बंदे श्रद्धा विश्वास रुपिनौ......।"
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंश्रद्धा का जलता हुआ दीप नए कल की सर्जना करता है।
जवाब देंहटाएंवाह! कितना सही कहा है आपने, स्वागत व आभार!
हटाएंश्रद्धा का दीप वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंश्रद्धा का रत्न ही
जवाब देंहटाएंपाने के काबिल है
स्वप्न से इस जगत में
और क्या हासिल है
आनंद की बरखा में
भीगता कण-कण उर का
सारी कायनात
इस उत्सव में शामिल है !..बहुत सुंदर भाव हैं आपकी इस रचना के ।
अनिता सुधी जी, अनीता जी, मनीषा जी व जिज्ञासा जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंश्रद्धा का दीप जले
जवाब देंहटाएंअंतर उजियारा है
हर घड़ी साथ दे
यह ऐसा सहारा है
अति उत्तम भावाभिव्यक्ति ।
स्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंनिर्विचारिता में स्वयं को सौंप देना ही तो परम श्रद्धा है... गूंगे की गुड़ भांति ....
जवाब देंहटाएंअद्भुत !! कितनी सटीक परिभाषा दी है आपने
हटाएंआपकी हर सूक्ष्मातिसूक्ष्म तरंगों को आत्मसात करना तो करना होता है किन्तु हृदय का आभार शब्दायित नहीं हो पाता है। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंजब आत्मसात होता है तो दो कहाँ रहे जो एक दूसरे का आभार माने, वहाँ तो केवल मौन हुआ जा सकता है
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