ब्रह्मा रचाते, विष्णु पालक
हे शिवजी ! तुम हो संहारक,
तीनों देव बसें मानव में
तीनों जन-जन के उद्धारक !
किन्तु आज ताकत के मद में,
मूल्य भुला दिये मानव ने,
निज विनाश की करे व्यवस्था
जगह देव की ली दानव ने !
दुरूपयोग सृजन क्षमता का,
व्यर्थ आणविक अस्त्र बनाये,
पंचतत्व को करता दूषित
अपनी मेधा पर इतराए !
पोषण करना भूल गया वह
नारायण को है दिया सुला,
असुरों का ही खेल चल रहा,
देवत्व परम् को दिया भुला !
शिव शंभु ! प्रकटो, अमृत बरसे
कण-कण नव जीवन पा जाये
सड़ा गला जो भी है बासी,
हो पुनर्गठित पुनः खिल जाये !
हे काल पुरुष ! हे महाकाल !
हे प्रलयंकर ! हे अभयंकर !
कर दो लीला, जड़ हो चेतन
विप्लव कर्तार, हे अग्निधर !
युग-युगों से जो लगी समाधि,
दो तोड़, नेत्र खोलो अपना
गंगा धारी, हे शिव शंकर !
परिवर्तन नहीं रहे सपना !
तुम महादेव ! हे देव देव !
कर तांडव दुनिया को बदलो,
जल जाये लोभ, मद, हर असुर
दुर्बलता मानव की हर लो !
हे पशुपति ! पशुत्व मिट जाये
मानव की शुभ गरिमा लौटे,
छूटे अज्ञान, अमृत बरसे
जो है विलीन महिमा लौटे !
नागाधारी ! हे सोमेश्वर !
प्रकटो हे सौम्य चन्द्रशेखर !
गले मुंडमाल, जटा धारी
त्रियंबकेश्वर ! हे विश्वेश्वर !
तुम मशान की राख लपेटे
वैरागी हे भोले बाबा !
हे नीलकंठ ! गंगाधारी !
स्थिर मना परम्, हे सुखदाता !
तुम करो गर्जना महान पुनः
हो जाये महा प्रलय भीषण,
हे बाघम्बर ! डमरू बोले,
हो जाय विलय हर इक दूषण !
शुभ शक्ति जगे यह देश बढ़े
सन्मार्ग चलें हर नर-नारी,
अर्धनारीश्वर ! महा महेश !
हे निराकार ! हे त्रिपुरारी !
धर्म तुम्हारा सुंदर वाहन,
नंदी वाहक ! हे रसराजा !
हे अनादि ! हे अगम ! अगोचर !
काल भैरव ! परम् नटराजा !