शुक्रवार, फ़रवरी 18

ऋतु मदमाती आई पावन

ऋतु मदमाती आई पावन


महुआ टपके रसधार बहे

गेंदा गमके प्रसून उगे,

महके सरसों गुंजार उठे

घट-घट में सोया प्यार जगे !


ऋतु मदमाती आई पावन

झंकृत हो तेरा-मेरा मन,

बिखराई रंगों ने  सरगम 

संगीत बहा उपवन-उपवन !


जागे पनघट जल भी चंचल

है पवन नशीली हँसा कमल,

भू लुटा रही अनमोल कोष

रवि ने पाया फिर खोया बल !


जीवन निखरा नव रूप धरा

किरणों ने नूतन रंग भरा,

सूने मन का हर ताप गया,

हो मिलन, उठा अवगुंठ जरा !


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