एक होली ऐसी भी
तन पर हैं गुलाबी वसन
हाथ पीले हुए हैं
पैरों पर लाल आलता
नयन गीले हुए हैं
प्रीत से भीगी है चूनरिया सारी
पी की आँखें जैसे बनी हैं पिचकारी
चिबुक छूने को हाथ बढ़ाया भर था
कि हो गये हैं दोनों गाल लाल
जैसे उतर आया हो भीतर से कोई गुलाल
हरी चूड़ियों की खनक भी उठी उसी क्षण
होली खेलती है ऐसे नयी दुल्हन !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-3-22) को "खिलता फागुन आया"(चर्चा अंक 4370)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरनीय !@
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