तेरी निष्ठुर करुणा भी
कामना की अगन भीषण
जल रहा दिन-रात अंतर,
हृदय अकुलाया भटकता
शोक से व्याकुल हुआ उर !
तू दृढ़ अंकुश बन आया
ताप से मुझको बचाने,
तेरी निष्ठुर करुणा भी
बसी जीवन औ' मरण में !
दिए तन-मन प्राण,वसुधा
नील अम्बर बिना माँगे,
तृप्त उर कुछ भी न चाहे
मिटे लालसा शुभ जागे !
कभी थक अलसाए नैन
कभी अधजगा सा चलता,
एक खोज में लगा हुआ
तेरे पथ बढ़ता जाता !
लिए ओट तू छिप जाता
राज यह मैंने जाना ,
पूर्व मिलन से योग्य बनूँ
मक़सद तेरा पहचाना !
(गीतांजलि से प्रेरित पंक्तियाँ)
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंवाह अनीता जी, शानदार कविता...लिए ओट तू छिप जाता
जवाब देंहटाएंराज यह मैंने जाना ,
पूर्व मिलन से योग्य बनूँ
मक़सद तेरा पहचाना !...और वो भी गीतांजलि से प्रेरित ..वाह
त्वरित और सुंदर प्रोत्साहन के लिए आभार अलकनंदा जी
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 24 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत आभार!
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4379 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!
हटाएंअन्तर्मन को छूती प्रेरणादाई रचना ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार उर्मिला जी!
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जवाब देंहटाएंखूबसूरत सृजन ।
अंतर्मन स्पर्श करती अनुपम कृति । गहन चिन्तन से उपजी लाजवाब अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंतू दृढ़ अंकुश बन आया
जवाब देंहटाएंताप से मुझको बचाने,
तेरी निष्ठुर करुणा भी
बसी जीवन औ' मरण में !
अद्भुत सृजन अनीता जी,सादर नमन
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंलिए ओट तू छिप जाता
जवाब देंहटाएंराज यह मैंने जाना ,
पूर्व मिलन से योग्य बनूँ
मक़सद तेरा पहचाना !
वाह…!
शुभा जी, मीना जी, कामिनी जी, सरिता जी व उषा किरण जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार !
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