सोमवार, मई 16

नहीं चाहिए

नहीं चाहिए 


किसी को नहीं चाहिए 

कोई भी दुःख, पीड़ा या उलझन 

मिला भी है उसे हज़ार बार प्रेम का वर्तन !

पर याद करता है केवल उदासी के लम्हे

सुख के सूरज की छवि बने भी तो कैसे  

सुस्वप्नों की स्मृति कहाँ आई  

 पर झट जमा लेता है दुःख की काई 

सुरति से स्वच्छ करना होगा  

फिर आशा और विश्वास का जल भरना होगा 

उर आनंद लहरियाँ स्वतः उठेंगी 

भीतर-बाहर सब शीतल करेंगी 

हमें वरदानों को सम्मुख करना है 

क्योंकि इस धरा पर पहले से ही 

काफ़ी है बोझ दुखों का 

निर्भार होकर हर कदम रखना है ! 




17 टिप्‍पणियां:

  1. सच में हम केवल दुखों को ही याद कर और बोझिल बना लेते हैं ज़िन्दगी । सार्थक लेखन ।

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  2. इस सुरति के लिए हार्दिक आभार। आनन्द की लहरियों में फिर से गोता लगा कर अच्छा लगा।

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  3. आपकी लिखी रचना मंगलवार 16 मई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. सुख आकर चले जाते हैं हम सिर्फ दुख की यादें ढोते रहते हैं...दुख का ध्यान दुख कख मनन फिर सुख की चाह कैसे...
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

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  5. सुख की चिड़िया फुर्र से उड़ जाती है
    दुख की हर राह व्यथाओं के घर जाती है
    यह सुख-दुख ,जीवन चक्र सार समझो गर
    दुख और सुख हमें छोड़ कहीं नहीं जाती है।
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    बेहतरीन अभिव्यक्ति अनीता जी
    सादर।


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  6. क्योंकि इस धरा पर पहले से ही

    काफ़ी है बोझ दुखों का

    निर्भार होकर हर कदम रखना है ! .... बहुत सुंदर!!!

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  7. स्वागत व आभार विश्वमोहन जी !

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  8. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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