बुधवार, जुलाई 13

सदगुरु दोनों हाथ लुटाता


सदगुरु दोनों हाथ लुटाता

खुद से बढ़कर कुछ भी जग में

पाने योग्य नहीं है, कहता,

उसी एक को पहले पालो

सदगुरु दोनों हाथ लुटाता !

 

जग में होकर नहीं जगत में

सोये जागे वह तो रब में,

उसके भीतर ज्योति जली है

देखे वह सबके अंतर में !

 

भीतर का संगीत जगाता

खोई सी निज याद दिलाता,

जन्मों का जो सफर चल रहा

उसकी मंजिल पर ले जाता !

लूट मची है राम नाम की

निशदिन उसकी हाट सजी है,

झोली भर-भर लायें हम घर

उसको कोई कमी नहीं  है !


ऐसा परम स्नेही न दूजा

अनुपम उसका द्वार खुला है,

बिगड़ी जन्मों की संवारें 

सुंदर अवसर आज मिला है ! 


गुरु पूर्णिमा पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित


7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह गुरुकृपा मिल जाये तो सब मिल जाता है !!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4490 में दिया जाएगा
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. खुद से बढ़कर कुछ भी जग में

    पाने योग्य नहीं है, कहता,

    उसी एक को पहले पालो

    सदगुरु दोनों हाथ लुटाता !

    ..इन पंक्तियों में गुरु की महत्ता का उत्कृष्ट वर्णन किया है आपने दीदी । सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ऐसा परम स्नेही न दूजा

    अनुपम उसका द्वार खुला है,

    बिगड़ी जन्मों की संवारें

    सुंदर अवसर आज मिला है !

    गुरु कृपा की बहुत ही सुन्दर व्याख्या करती लाजवाब सृजन, गुरु कृपा सब पर बनी रहे 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. गुरु की महत्ता का लाजवाब वर्णन

    जवाब देंहटाएं