गुरुवार, अगस्त 25

कौन फूल खिलने से रोके

कौन फूल खिलने से रोके 
  
बहे न दिल से धार प्रीत की
जाने कितने पाहन रोकें, 
हरियाली उग सकती थी जब 
कौन फूल खिलने से रोके !

सहज स्पंदित भाव क्यों उठते  
तर्कों के तट बांध लिए जब,
घुट कर रह जाती जब करुणा  
कैसे जगे ख़ुशी भीतर तब !

एक बीज धरती में बोते 
बना हजार हमें लौटाती,
इक मुस्कान हृदय से उपजी 
अनगिन दिल के शूल मिटाती !

बहना ही होगा मन को नित 
अंतर का सब प्यार घोलकर, 
भरते रहना होगा घट को 
उस अनाम का नाम बोलकर !

 उसी एक का प्रेम जगत में 
लाखों के अंतर  में झलके,
जो दिल इसमें भीग गया हो 
पा जाता है खुद को उसमें !

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहना ही होगा मन को नित
    अंतर का सब प्यार घोलकर,
    भरते रहना होगा घट को
    उस अनाम का नाम बोलकर !....बहुत सुंदर!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  3. मन को छूती
    बेहद खूबसूरत रचना

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  4. प्रतीकात्मक शैली में सुंदर भाव सृजन।
    अभिनव।

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  5. कुसुम जी, ओंकार जी व अनीता जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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