नव भारत का निर्माण करें
स्वर्णिम युग इस भू पर लाने
योग धर्म का ध्वज लहराने,
व्यर्थ जले, रहे शेष सार्थक
मिलकर हम यही प्रयास करें !
नव भारत का निर्माण करें !
तोड़ें हर गढ़ रूढ़िवाद का
कट्टरता औ' मिथ्या हठ का,
झूठे दुर्ग, क़िले जो भीतर
मतान्धता के सम्पूर्ण गिरें !
नव भारत का निर्माण करें !
नए हृदय की कोमल भू पर
चट्टानों सम निर्णय लेकर,
शिव जैसे कैलाश विराजें
मानवता उच्च उड़ान भरे !
नव भारत का निर्माण करें !
किसने रोका है कदमों को
स्वार्थ हृदय से झर जाने को,
प्रतिपल बने चेतना पावन
शुभ मुल्यों का सम्मान करें !
नव भारत का निर्माण करें !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-11-2022) को "जंगल कंकरीटों के" (चर्चा अंक-4600) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
हटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी!
जवाब देंहटाएंराष्ट्र के नव निर्माण के सुन्दर संकल्प के साथ अत्यंत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंसुन्दर श्रजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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