रविवार, जनवरी 22

सच में

सच में 


हम सच को स्वीकार नहीं करते 

वरना साफ़-साफ़ कह देते

 हम मंदिर आते हैं खुद के लिए 

हे ईश्वर ! हम तुमसे प्रेम नहीं करते 

शब्दों को एक-दूसरे के साथ बिठाकर 

गढ़ लेते हैं प्रार्थनाएँ 

जिनमें हमें भी यक़ीन नहीं होता 

तू हमारा कुशल-क्षेम रखेगा 

वरना क्या इस बात पर करते नहीं भरोसा

नहीं है अहम् हममें रत्तीभर भी

कहकर, अहंकार को ही फूल चढ़ाते 

जो पाठ खुद नहीं पढ़ पाए 

वह औरों को पढ़ाते 

स्वयं को कटघड़े में खड़े करके 

खुद वकील बन जाते 

फिर बनते न्यायाधीश और 

फ़ैसला भी अपने ही हक़ में सुनाते !


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,जनवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. वाह! बहुत सुंदर। वाकई हम न्यायपाल स्वयं बन जाते हैं।

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  3. स्वयं को कटघरे में खड़े करके
    खुद वकील बन जाते
    फिर बनते न्यायाधीश और
    फ़ैसला भी अपने ही हक़ में सुनाते !
    सत्य कथन ।
    अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  4. वाह!! बढ़िया कटाक्ष, सही कहा जो पाठ हम खुद नहीं पढ़ पाते, वो भी दूसरों को पढ़ाने का प्रयास करते।

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  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 24 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. सच में यही सच है और ये सच ही हम स्वीकार नहीं करते ।
    बहुत लाजवाब ।

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  7. हे ईश्वर ! हम तुमसे प्रेम नहीं करते
    सच में, हम सांसारिक लोग अपनी इच्छापूर्ति के लिए ही मंदिर जाते हैं। इच्छापूर्ति ना होने पर तो लोग ईश्वर को भी कटघरे में खड़ा करके फैसला अपने हक में सुना लेते हैं।

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  8. सच कहा आपने हम सदा सही होते हैं और दूसरे सही होकर भी गलत हो जाते हैं क्योंकि ऐसा हम सोचते हैं ऐसा हमारा दृष्टिकोण होता है।
    आत्मावलोकन को प्रेरित करती बहुत अच्छी रचना।
    सादर।

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  9. ओंकार जी, विश्वमोहनजी, मीना जी, रूप जी, सुधा जी, मीना शर्मा जी व श्वेता जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!

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