समता की इक ढाल बना लें
पुष्पों का मृदु हार बनें हम
काँटों का चुभता ताज नहीं,
प्रीत सुरभि हर सूं बिखरायें
उर बजे शोक का साज नहीं !
दुनिया आँख खोलकर देखें
झर-झर अमिय निर्झरित होता,
समता की इक ढाल बना लें
नादां मन गर कंपित होता !
जीवन अभेद, जीवन अछेद्य
जग को अपना मीत बनायें,
ले शिव-शक्ति का सदा आश्रय
कण-कण में उमंग बिखरायें !
अनदेखे हर बंधन छूटें
मेरा-तेरा का महा बंध,
कुछ भी नहीं, या हमीं सब कुछ
फिर कैसा यह अंतरद्वंद्व !
हर मरीचिका छलना ही है
छायाओं से कैसा डरना,
भय की बेड़ी से जग बाँधे
उस प्रियतम से जुड़कर रहना !
जीवन अभेद, जीवन अछेद्य
जवाब देंहटाएंजग को अपना मीत बनायें,
ले शिव-शक्ति का सदा आश्रय
कण-कण में उमंग बिखरायें ! ...वाह ...अद्भुत लिखा अनीता जी, बसंत आगमन की आपको ढेर सारी शुभकामनायें
आपको भी बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ अलकनंदा जी!
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
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