गुरुवार, जनवरी 5

हर पीड़ा मुदिता से भर दे

हर पीड़ा  मुदिता  से भर दे


मुक्त पिरोया गया माल में 

बिंध मध्य में शून्य हुआ जब,

जा पहुँचा सम्मान बढ़ाने 

देवस्थल की शोभा बन तब !


मन भी मुक्त सघन पीड़ा से 

सीखे  रीता होना खुद से, 

कृष्ण सूत्र में गुँथ जाता है 

एक हुआ फिर सारे जग से !


मुक्ति का यह मार्ग अतुलनीय  

हर पीड़ा मुदिता  से भर दे, 

ज्ञान प्रीत से, प्रीत कर्म से  

सुगम राह पर ला कर धर  दे !


कर्म अर्चना है अकर्म सम

व्यक्त ऊर्जा को होने दे, 

गंगा सी बहती जो निर्मल 

दिव्य भाव भीतर बोने दे  !


चाह मुक्ति की यह अनुपम है 

स्वयं का व जग का हित सधता, 

रिक्त हुआ उर जब भीतर से 

प्रियतम खुद ही आकर बसता  !


13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 9 जनवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. मन भी मुक्त सघन पीड़ा से
    सीखे रीता होना खुद से,
    कृष्ण सूत्र में गुँथ जाता है
    एक हुआ फिर सारे जग से !
    वाह!!
    आध्यात्मिकता से परिपूर्ण सुन्दर जीवन दर्शन ।

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  3. वाह भावपूर्ण हृदय स्पर्शी सुन्दर रचना

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  4. आपकी आध्यात्मिक रचनाएँ अलग संसार में ले जाती हैं।
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।

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  5. आपकी आध्यात्मिक रचनाएँ अलग संसार में ले जाती हैं।
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. मुक्ति का यह मार्ग अतुलनीय  
    हर पीड़ा मुदिता  से भर दे, 
    ज्ञान प्रीत से, प्रीत कर्म से  
    सुगम राह पर ला कर धर  दे... बहुत ही सुंदर निशब्द करता सृजन।
    सादर

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  7. ज्ञान प्रीत से, प्रीत कर्म से

    सुगम राह पर ला कर धर दे !
    वाह!!!!
    लाजवाब।

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  8. अभिलाषा जी, शुभा जी, श्वेता जी, अनीता जी व सुधा जी आप सभी का हृदय से स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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