मौन
मौन को गुनो
मौन से जो झरती है आभा
उसे ही चुनो
जैसे गिरते हैं चुपचाप हरसिंगार
सुवास फैलाते
मौन के उन क्षणों से भी
किस अन्य लोक की सुगंध आती है
जैसे कोई कहे कृष्ण
तो राधा अपने आप चली आती है
और इतना ही नहीं
गौएँ और गवाले भी !
भीतर वृंदावन उभर आते हैं
और महारास घटता है
कृष्ण का नाम छुपाए है
सारा ब्रह्मांड
मौन में भी
एक साम्राज्य से मिलन होता है
जो नितांत अपना है
नि:शब्द जहाँ कोई रस बहता है !
बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
जवाब देंहटाएंमौन के अनुभव का आनन्द पुष्पों की सुरभि जैसा है । अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी!
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