रिक्तता
जब ख़ाली हो मन का आकाश
तो कोई राजहंस तिरता है
उसमें हौले-हौले
नील निरभ्र आकाश में वह श्वेत बादल सा हंस
जिसके पंखों की श्वेत आभा
पथ को रोशन करती है
जीवन में उजास भरती है
जब ख़ाली हो मन का आकाश
तो वंशी की धुन गूँजती है
मद्धिम-मद्धिम
खुले अंबर में वह प्यारी सी तान
आह्लादित करती मन प्राण
हृदय में विश्वास भरती है
जब न रहे कोई दूसरा
तो रस की एक धार बही आती है
मंद-मंद हवा के झोंकों सी
देखते-देखते
सारे जग में छा जाती है !
शून्य में डूबे मन से मौन संवाद उस असीम शक्ति से जोड़ता हमें जिसके सत्ता सर्वत्र व्याप्त है । अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया!! स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंजीवन में उजास और उल्लास पर अद्भुत चिंतन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
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