वही ख़ुदा उनमें भी बसता है उतना ही
रोटी-कपड़े की फ़िक्र नहीं होती जिनको
ख़ुदा की रहमत है कमी नहीं ज़रा उनको
चंद निवालों के लिए दिन-रात खटते हैं
कभी देखा भी है पसीना बहाते उनको
अपने हाथों से नई इमारतें गढ़ते
जा बसें उनमें ख़्वाब भी नहीं आये जिनको
वही ख़ुदा उनमें भी बसता है उतना ही
बड़ी प्यारी सी हँसी है मेहनत कशों की
सही कहा! परमार्थ हेतु स्वार्थ की बलि देनेवाले मज़दूर भाई ही खुदा की ख़िदमत करते हैं। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विश्वमोहन जी!
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 23 मार्च 2023 को 'जिसने दी शिक्षा अधूरी तुम्हें' (चर्चा अंक 4649) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार!
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी!
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