जीवन एक पहेली जैसा !
जीवन यह संदेश सुनहरा !
छोटा मन विराट हो फैले
ज्यों बूंद बने सागर अपार,
नव कलिका से कुसुम पल्लवित
क्षुद्र बीज बने वृक्ष विशाल !
जीवन कौतुक एक अनोखा !
मन यदि अमन बना सुध भूले
खो जाएं बूँदें सागर में,
रूप बदल जाए कलिका का
मिट कर बीज मिलें माटी में I
जीवन अवसर एक आखिरी !
किंतु कोई न मिटना चाहे
मन सुगीत सदा दोहराए
मानव ‘मै’ होकर ही जग में
कैसे आसमान छू पाए I
जीवन एक पहेली जैसा !
हो जाएँ यदि रिक्त स्वयं से
बूंद बहेगी बन के सरिता
स्वप्न सुप्त कलिका खिलने का
पनपेगा फिर बीज अनछुआ
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 28 जून 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-06-2023) को "रब के नेक उसूल" (चर्चा अंक 4670) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
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