बुधवार, जुलाई 12

स्पंदन

स्पंदन 


जो भी सृजित है 

गढ़ा गया है 

निरंतर गतिमान है 

सृजन के क्षण से 

तरंगित और कंपित है  

परमाणु में घूम रहे हैं 

सूक्ष्म इलेक्ट्रॉन 

अनवरत नाभि के चारों ओर 

जैसे घूमती है धरा 

अपनी सीमा में 

श्वास की धुन बज रही है रातदिन 

धारा मन की बहती जाती है 

नींद में भी 

किन्ह अनजान तटों को छू आती है 

समय का अश्व दौड़ा जा रहा है 

युग पर युग बीतते जाते हैं 

पर नहीं चूकती है ऊर्जा की यह 

अजस्र खान  

जो इस सारे आयोजन का

 आधार है 

इसीलिए तो मनुज को 

भगवान से प्यार है ! 


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. समय का अश्व दौड़ रहा है
    जीवन सत्य को रेखांकित करती सुंदर रचना।

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