शनिवार, सितंबर 9

इच्छाएँ

इच्छाएँ 


इच्छाएँ पत्तों की तरह उगती हैं 

मन के पेड़ पर 

कुछ झड़ जाती हैं आरम्भ में ही 

कुछ बनी रहती हैं देर तक 

कभी समाप्त नहीं होतीं 

यह एक सदानीरा नदी सी 

कल-कल करतीं शोर मचातीं 

जिसमें तरंगें उठती गिरती हैं निरंतर 

पत्तों को मूल का ज्ञान नहीं हो पाता

जिनसे वे पोषित हैं 

न तरंगों को हिमशिखरों का 

अंततः मूल भी पोषित होता है धरा से 

और हिमशिखर जल से 

पंच भूतों के पार क्या गया है कोई 

भूत भावन है जो शिव सोई 

शिवोहम् मंज़िल है 

हम रास्तों पर ही अटक रहे हैं 

प्रकाश सम्मुख है 

हम अंधेरों में ही भटक रहे हैं ! 


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 10 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. अनिता दी, सच मे इच्छाएं कभी भी समाप्त नहीं होती। सुंदर प्रस्तुति।

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  3. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  4. इच्छाएं जरूरी हैं बस इच्छाधारी होना ठीक नहीं :)

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  5. पंच भूतों के पार क्या गया है कोई

    भूत भावन है जो शिव सोई

    शिवोहम् मंज़िल है.!
    जीवन संदर्भ की गहन परिभाषा।बहुत सुंदर भाव संप्रेषण।

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  6. इच्छाएं, कामनाएं ... यही तो मूल में हैं हर किसी के ... जीवन, मृत्यु भी तो इनके और इश्वर के अधीन हैं ...

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    1. स्वागत व आभार ! और सुना है ईश्वर भक्तों के अधीन है

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