शुक्रवार, नवंबर 24

स्वप्न और जागरण

स्वप्न और जागरण 

जाग गया जो

वह देख सकता है 

 जूझ रहा है कैसे 

सोया हुआ व्यक्ति

दु:स्वप्नों से !

सुख की चाह की ख़ातिर 

दुख देता है औरों को 

पर बोता है बीज दुख के

 ख़ुद के लिए 

शिशु के रुदन के प्रति भी 

नहीं पिघलता जो दिल 

घिरा नहीं क्या घोर तमस से 

आत्मा का स्पर्श हुए बिना 

सत्य दिखाई नहीं देता 

अभाव और दुखों से जूझते जन 

निज सुख के आगे देख नहीं पाता 

 परम का स्पर्श मिल जाता है जब

करुणा जागती है उसी क्षण

कोई उम्मीद न करे औरों से 

ख़ुदा होने की 

चढ़ाना होगा सूली पर सदा 

ख़ुद को ही 

औरों को न वेदी पर तुम बिठलाओ 

ख़ुद के भीतर ही देवता को पाओ 

ख़ुदा से मिलने की कोई और तो रीत नहीं 

ख़ुद से बढ़कर मिलती कहीं भी प्रीत नहीं 

स्रोत भीतर प्रेम का है 

दिल की राह से जाना होगा 

वहीं से झरती है संग करुणा

 गंगा ज्ञान, भक्ति यमुना 

और कर्म की वरुणा ! 


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 26 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. औरों को न वेदी पर तुम बिठलाओ

    ख़ुद के भीतर ही देवता को पाओ

    बहुत ही सुन्दर संदेश,सादर नमस्कार 🙏

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